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अ॒यं त॑ इन्द्र॒ सोमो॒ निपू॑तो॒ अधि॑ ब॒र्हिषि॑ । एही॑म॒स्य द्रवा॒ पिब॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayaṁ ta indra somo nipūto adhi barhiṣi | ehīm asya dravā piba ||

पद पाठ

अ॒यम् । ते॒ । इन्द्र॑ । सोमः॑ । निऽपू॑तः । अधि॑ । ब॒र्हिषि॑ । आ । इ॒हि॒ । ई॒म् । अ॒स्य । द्रव॑ । पिब॑ ॥ ८.१७.११

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:11 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:11


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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना ही विधान करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (ते) तेरा (अयम्+सोमः) यह रसात्मक संसार (बर्हिषि+अधि) आकाश में स्थापित (निपूतः) अतिशय शुद्ध है (ईम्) हे ईश ! इस समय (अस्य+एहि) इस रसात्मक संसार के निकट आ। (द्रव) इस पर द्रवीभूत हो और (पिब) उसे कृपादृष्टि से देख ॥११॥
भावार्थभाषाः - यह संसार ही परमात्मा का सोम अर्थात् प्रिय वस्तु है। जैसे हम जीव सोमरस से बहुत प्रसन्न होते हैं। परमात्मा भी इससे प्रसन्न होता है, यदि यह छल कपट आदि से रहित शुद्ध पवित्र हो। इससे यह शिक्षा होती है कि प्रत्येक मनुष्य को शुद्ध पवित्र होना चाहिये ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे शूर ! (अयम्, ते, सोमः) यह आपका सोमरस (बर्हिषि, अधि, निपूतः) पवित्र आसन में शुद्ध किया है (एहि) आइये (द्रव) शीघ्र आइये (ईम्) इस समय (अस्य, पिब) इसको पिएँ ॥११॥
भावार्थभाषाः - याज्ञिक पुरुषों की ओर से उक्ति है कि हे शूरवीरो ! जिस सोमरस को हम लोगों ने बड़ी शुद्धतापूर्वक बनाया है, उसको पान कर हमारा सत्कार स्वीकार करें, या यों कहो कि हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर सुशोभित करें, जिससे दुष्टजन सदा भयभीत हुए यज्ञ में विघ्नकारी न हों ॥११॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थनैव विधीयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! ते=तव सृष्टः। अयं सोमः=रसात्मकः संसारः। बर्हिषि+अधि=अधिः सप्तम्यर्थः। बर्हिषि=आकाशे स्थापितः सन्। निपूतः=नितरां पूतः=शुद्धोऽस्ति। हे देव ! ईम्=इदानीम्। अस्य=इमम्। एहि। द्रव=अस्योपरि द्रवीभूतो भव। पिब=कृपादृष्ट्या अवलोकय ॥११॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे शूर ! (अयम्, ते, सोमः) अयं तव सोमरसः (बर्हिषि, अधि, निपूतः) पवित्रासने शोधितः (एहि) आयाहि (द्रव) शीघ्रमायाहि (अस्य, पिब) इमं पिब (ईम्) इदानीम् ॥११॥